इंद्रा एक्सप्रेस नेटवर्क
>छठ को कहा जाता है आस्था का महापर्व,बांस से बने सामानों का है विशेष महत्व।
पतरही जौनपुर।लोक आस्था के महापर्व डाला छठ को लेकर पतरही बाजार में तैयारियां जोरों पर है।छठ पर्व को लेकर लोगों में काफी उत्साह का माहौल होता है दुर्गा पूजा,दीपावली खत्म होते ही छठ पूजा की तैयारी में लोग जुट जाते हैं। छठ पर्व को आस्था का महापर्व कहा जाता है।महापर्व छठ पर बांस से बने सामानों का विशेष महत्व है। पूजा में इस्तेमाल किये जाने वाले सामानों में सूप,डाला,दऊरा बांस से बने अन्य सामानों का विशेष महत्व होता है।इन सब चीजों के बिना छठ पर्व अधूरा माना जाता है क्योंकि छठ पूजा में बांस से बने सामानों का अपना एक अलग ही महत्व है।सबसे खास बात यह है कि भगवान भास्कर को जिस सूप में प्रसाद अर्पित किया जाता है उसे समाज के सबसे पिछड़े जाती के लोग बनाते हैं ऐसे में पतरही बाजार में बांस से बनने वाले दऊरा को अंतिम रूप देने में बांस से डाला,सूप,दऊरा बनाने वाले कारीगर जुट गए हैं।कारीगरों द्वारा दुकान पर सूप और दउरा, डाला भी स्टॉक किया जा रहा है। इससे कारीगर को जमकर ऑर्डर भी मिल रहे है। जिसे समय पर सूप व डाला देने के लिए कारीगर पूर्व से ही काम पर जुटे गए है। कारीगरों ने बताया कि हर वर्ष दुर्गा पूजा के बाद यहां हम सभी लोग सूप,दउरा बनाने में जुट जाते हैं।छठ पूजा तक दउरा और सूप बनाते हैं।इस वर्ष सूप की कीमत 100 से 120 रुपया तथा दउरा की कीमत 300 से 350 रुपया तक है।जिले के विभिन्न स्थानों पर महादलित परिवार के लोग सुबह से ही सूप दाउरा व डाला बनाने में जुट जा रहे है।इस काम में महिलाएं भी बढ़-चढ़कर भाग ले रही है।अपने परिवार के लिए भोजन बनाने के बाद शाम तक काम पर लगी रहती है।कारीगर ने बताया कि महंगाई इतनी बढ़ गई है कि जितनी लागत लगती है उसके हिसाब से कीमत नहीं मिल पाती बावजूद उसके इन्हें यह काम करना पड़ता है क्योंकि इसके अलावा यह लोग कुछ और करना नहीं जानते यह हमारा पुश्तैनी धंधा है इसी काम के सहारे हमारे साल भर के रोजी-रोटी का जुगाड़ होता है। गौरतलब हो कि सरकार को इन कारीगरों के लिए कुछ करना चाहिए ताकी इनका पुस्तैनी धंधा बरकार रहे और इनके परिवार का गुजारा सही तरीके से हो सके। इसके लिए सरकार को कोई ठोस कदम उठाए ताकि इनकी भी छठ पर्व अच्छे से मन सकें।