इंद्रा एक्सप्रेस नेटवर्क
जौनपुर। जिला कृषि रक्षा अधिकारी विवेक कुमार ने जनपद के किसानों को सलाह दिया कि वर्तमान में कोहरा/पाला के कारण फसलों में लगने वाले कीटों/रोगों तथा आलू की पिछेती झुलसा के नियंत्रण हेतु फसलों की सतत निगरानी करते हुए निम्नलिखित विवरण के अनुसार बचाव कार्य करें। आलू में पिछेती झुलसा रोग की प्रारम्भिक अवस्था में पत्तियों पर छोटे हल्के पीले रंग के अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देते हैं जो शीघ्र ही बड़े आकार के हो जाते हैं। इस रोग से बचाव हेतु कापर आक्सी क्लोराइड 50 प्रतिशत घूलनशील चूर्ण 2.5 किग्रा या मैंकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.0 किग्रा प्रति हे की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिन के अन्तराल पर 2 से 3 छिडकाव करें।उन्होंने बताया कि तिलहनी फसलों में माहूँ कीट का अधिक प्रकोप होता है। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पौधों के कोमल तनों, पत्तियों, फूलों, एवं नई फलियों से रस चूसकर उसे कमजोर एवं क्षतिग्रस्त कर देते हैं। इससे बचाव हेतु एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई० सी० (नीम आयल) 2.5 लीटर प्रति हे की दर से 600 से 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करें। रासायनिक नियंत्रण हेतु डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई० सी०एक लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस एल 250 मिली प्रति हे. की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर 1 से 2 छिडकाव करें।मटर की फसल में बुकनी रोग से बचाव हेतु बेटेवुल सल्फर 80 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2 किग्रा प्रति हे. या कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 250 ग्राम प्रति हे0 600-800 लीटर पानी में घोल बनाकर 10 दिन के अन्तराल पर 2 से 3 छिडकाव करें। इस रोग में पत्तियों, फलियों एवं तने पर सफ़ेद चूर्ण जमा हुला दिखाई देता है बाद पत्तियां भूरी या काली होकर सुख जाती है। वर्तमान में तापमान में भारी गिरावट हो रही है, इसलिये पाला से बचाव हेतु खेत में हल्की सिंचाई करें तथा संभव हो तो खेत में धुँआ करें, ताकि पाला का असर कम हो।