इंद्रा एक्सप्रेस नेटवर्क
बांदा। नवाब टैक में पितरों को पानी देते हुए और कृष्णकांत शुक्ल और कृष्ण कुमार दीक्षित ने पूजा अर्चना कराई। भाद्रपद शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक 16 दिन पितृपक्ष का समय होता है जिसमें अपने पूर्वजों की तृप्ति और मुक्ति हेतु श्राद्ध और तर्पण करने के लिए शास्त्रों में बताया गया है पितृपक्ष में ही गया श्राद्ध करने का विधान है, पितरों के लिए श्रृद्धा पूर्वक किया गया कव्यदान तथा ब्राह्मण भोजन आदि ही श्राद्ध कहलाता है। हर व्यक्ति को यह सब करना चाहिए जिससे पितर प्रसन्न होते हैं अपनी सामर्थ्य और श्रृद्धा से ही करना चाहिए। जो सामर्थ्यवान नहीं है, वे गाय, कुत्ते और कौवों को ही खिलाये और तर्पण (जलदान) अवश्य करें मन से पितरों की प्रार्थना करें,। देवताभ्यरू पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै च नित्यमेव नमो नमः।। तर्पण करते समय सर्वप्रथम पूर्व में देवताओं और दश ऋषियों को देवतीर्थ से चावल सहित एक एक अंजलि जल दे। उत्तर में सप्तमुनियों को जव सहित दो-दो अंजलि जल दे तथा दक्षिण में चौदह यमो एवं पितरों को तिल सहित तीन—तीन अंजलि जल दें। इसके बाद भीष्म पितामह और भगवान सूर्य को जल दें। श्राद्ध और तर्पण से पितर प्रसन्न होते और कल्याण की कामना करते हैं। श्राद्ध न करने वाले को श्राप देते हैं जिससे पितृदोष लगता है। इस वर्ष पितृपक्ष 29 सितम्बर से प्रारम्भ होकर 14 अक्टूबर तक है।